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महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास

गोड्डा में अदानी फाउंडेशन की नेक पहल

40 डिग्री गर्मी में मशरूम उगा रही हैं गोड्डा की महिलाएं

  • अदाणी फाउंडेशन से मिली ट्रेनिंग से हो रहीं आत्मनिर्भर

  • मिल्की मशरूम उत्पादन से महिलाएं बनी आत्मनिर्भर

  • अदाणी फाउंडेशन से नि:शुल्क किट और ट्रेनिंग

  • मशरूम की बढ़ती मांग से महिलाओं को अच्छा मुनाफा

झारखंड/गो

अदानी के मशरूम ट्रेनिंग में उपस्थित क्षेत्र की महिलाएं

ड्डा : जहां एक तरफ गर्मी में खेती करना चुनौती बनता जा रहा है, वहीं गोड्डा की महिलाएं “दूधिया सोना” यानी मिल्की मशरूम उगाकर न सिर्फ मौसम को मात दे रही हैं, बल्कि आत्मनिर्भरता की मिसाल भी पेश कर रही हैं। 45 डिग्री तापमान में भी यह खास किस्म का मशरूम शानदार उत्पादन दे रहा है। तपती गर्मी में खेती का नया विकल्प है मिल्की मशरूम मिल्की मशरूम की सबसे बड़ी खासियत यही है कि इसे तेज गर्मी में 35 से 40 डिग्री तापमान में भी आसानी से उगाया जा सकता है। जहां दूसरी फसलें इस तापमान में नष्ट हो जाती हैं, वहीं यह मशरूम 90 प्रतिशत नमी और बंद कमरे के वातावरण में तेजी से विकसित होता है। गोड्डा जिले की महिलाएं गर्मी के इस मौसम में भी मशरूम उगा रही हैं और अपने घर की आर्थिक स्थिति को मजबूत बना रही हैं। यह मुमकिन हो पाया है अदाणी फाउंडेशन की मदद से, जो महिलाओं को मुफ्त ट्रेनिंग और मशरूम उत्पादन के लिए जरूरी सामान मुहैया करवा रहा है।

अदाणी पावर प्लांट के आस-पास के गांव मोतिया, डुमरिया, पटवा, रंगनिया, बक्सरा, नयाबाद, गंगटा आदि गांवों की 200 से अधिक महिलाएं अदाणी फाउंडेशन की ओर से ट्रेनिंग लेकर न केवल खुद मशरूम उगा रही हैं, बल्कि दूसरी महिलाओं को भी इसकी ट्रेनिंग दे रही हैं। इससे पूरे गांव की सामाजिक और आर्थिक तस्वीर बदल रही है। अदाणी फाउंडेशन की यह पहल ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण का बेहतरीन उदाहरण बन चुकी है।
पटवा गांव की बिन्दु देवी पहले सिर्फ घर के कामों तक सीमित थीं, लेकिन अदाणी फाउंडेशन की ट्रेनिंग लेने के बाद अब वह मशरूम उत्पादन करके हर महीने 8 से 10 हजार रुपये तक कमा रही हैं। बिन्दु कहती हैं, “पहले लगता था खेती सिर्फ पुरुषों का काम है, लेकिन अब मशरूम उत्पादन से मेरी खुद की पहचान बनी है।”
मिल्की मशरूम की खासियत यह है कि इसे गर्मी में भी उगाया जा सकता है। एक छोटे से कमरे में 35-40 डिग्री तापमान और 90% नमी में यह अच्छी पैदावार देता है। मात्र 20-25 रुपये प्रति किलो की लागत से तैयार यह मशरूम बाजार में 200 से 400 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। यानी लागत का दस गुना तक मुनाफा संभव है।
महिलाएं सबसे पहले भूसे को फॉर्मलीन और दवाओं से उपचारित करती हैं। फिर बीज मिलाकर पॉलिथीन की थैलियों में भरकर अंधेरे कमरे में रखती हैं। 20 दिन बाद केसिंग होती है, जिसमें मिट्टी और खाद मिलाकर हल्की सिंचाई की जाती है। लगभग 15 दिन में मशरूम उगने लगते हैं।
मशरूम का स्वाद और पौष्टिकता ही नहीं, बल्कि इसके औषधीय गुणों के चलते भी इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। डॉक्टर भी कई बीमारियों में मिल्की मशरूम को खाने की सलाह देते हैं। गोड्डा के इन गांवों की महिलाएं ने साबित कर दिखाया है कि अगर सही मार्गदर्शन और संसाधन मिले, तो गर्मी जैसी चुनौती भी अवसर में बदली जा सकती है। मिल्की मशरूम गर्मियों में खेती का एक मजबूत विकल्प बनकर उभरा है, और ग्रामीण महिलाएं इसका पूरा लाभ उठाकर सामाजिक और आर्थिक बदलाव की कहानी लिख रही हैं।

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